Friday, December 30, 2011

Happy New Year

May this new year bring for you peace,happiness and above all self satisfaction with brilliant success and top most position in all trails of life.may you enjoy love and blessing from all of us.let's accept my heartiest congratulation on this new year 2012.


Thursday, December 22, 2011

नज़रों से अपनी



नज़रों से अपनी प्यार  का पैगाम दे गए
वो दिल की धडकनों को ही नाम दे गए!
दमन झटक के चल दिए वो बेरुखी के साथ
पल भर में मुझको सैकड़ों इलज़ाम दे गए!
दाग-ए-जुदाई, दाग-ए-जिगर,दाग-ए-आरजू
वो जाते-जाते मुझको ये इनाम दे गए !
वो ज़िन्दगी  से मेरे चले गए मगर 
इलज़ाम  कई दे गए तो  कई ले गए !
आये थे मेरी जिंदगी में 'अर्जुन' लम्हे कुछ ऐसे
सुबह-ए-बहार ले गए और शाम ए गम दे गए!


Wednesday, December 14, 2011

महंगाई की मार

महंगाई की मार से जूझ रही जनता की जेब अब रसोई गैसे की कीमत से जलेगी। सरकार रसोई गैस और केरोसिन की सब्सिडी खत्म करने की तैयारी में है। अगले साल पहली अप्रैल से सिलेंडर पर सब्सिडी खत्म करने की योजना बन चुकी है। यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी यूआईडीएआई के प्रमुख नंदन निलेकणी ने इस बारे में फॉर्मूला सरकार के हवाले कर दिया है।
इस फॉर्मूले के मुताबिक सब्सिडी का फायदा लोगों की कमाई के आधार पर मिलेगा। सरकार जिन लोगों को सब्सिडी के लायक मानेगी, उन्‍हें सब्सिडी का रुपया सीधे उनके बैंक खाते में जमा कर दिया जाएगा। बैंक खाता आधार संख्या से जुड़ा होगा।
सिलेंडर पर नकद सब्सिडी की पायलट परियोजना हैदराबाद और मैसूर में चल रही है, जबकि केरोसीन पर नकद सब्सिडी की पायलट परियोजना अलवर में चल रही है। इसे पहली अप्रैल से पूरे देश में लागू करने की योजना है। इसके लिए राज्य सरकारों को 31 मार्च तक तैयारी क...र लेनी है। इससे पहले पेट्रोलियम और गैस पर बनी संसद की स्‍थायी समिति रसोई गैस पर सब्सिडी पूरी तरह खत्म करने की सिफारिश कर चुकी है। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक जिनकी सालाना आमदनी छह लाख रुपये या इससे ज्यादा है उन्हें रसोई गैस पर सब्सिडी देना सरकार तुरंत बंद कर दे। साथ ही साथ, गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों को मुफ्त में एलपीजी कनेक्शन देने की स्कीम अगले 5 साल तक और जारी रखी जाए।
हालांकि फिलहाल पेट्रोलियम मंत्रालय ने एलपीजी गैस के सिलेंडरों का कोटा तय करने की योजना टालने का फैसला किया है। मंत्रालय के प्रस्ताव के मुताबिक आयकर अदा करने वाले लोगों के लिए साल भर में महज चार सिलेंडर ही रियायती दर (सब्सिडी के साथ) पर देने की बात कही जा रही है। प्रस्‍ताव के मुताबिक यदि चार से अधिक सिलेंडर की जरूरत पड़ी तो इसे बाजार के दाम पर लेना होगा। ऐसा होता है तो आम तौर पर अगर आप हर साल आठ से नौ सिलेंडर रिफिल कराते हैं तो आपका बजट 1100 से 1300 रुपये तक बढ़ जाएगा।
देश की राजधानी दिल्‍ली में एक सिलेंडर रिफिल कराने में करीब चार सौ रुपये लगते हैं जौ मौजूदा बाजार मूल्‍य से 260 रुपये कम है। इसमें सरकार और तेल कंपनियां सब्सिडी देती हैं।
मंत्रलाय ने पेट्रोलियम पदार्थों पर सब्सिडी की वजह से सरकारी खजाने का बोझ कम करने और सिर्फ जरूरतमंदों को ही सरकारी सब्सिडी का फायदा मिलना सुनिश्चित कराने के मकसद से ऐसा प्रस्‍ताव लाया था। सरकार का मानना है कि सस्‍ते सिलेंडर का कोटा तय करने पर हर साल करीब 12 हजार करोड़ रुपये की बचत हो हो सकती है। लेकिन अब मंत्रालय के आधिकारिक सूत्र बता रहे हैं कि इस योजना को कुछ समय के लिए ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया है।

Thursday, November 24, 2011

जी चुका हूँ !





दर्द-ए-दिल दुनिया का छिपाकर
मै तुम्हे अब भूल चूका हूँ !
प्यार की कीमत में अपनी हंसी 
गवांकर मै तुम्हे खो चूका हूँ
तेरे गमो का बिस्तर लगाकर 
मै अब बेफिक्र सो चूका हूँ!
तेरी यादों के समंदर में मै 
गहराई तक डूब चूका हूँ !
निशाना अपने दिल का ही
खुद लगाकर तीर खा चुका हूँ!
तुमसे दूरी बना रखी है यूँ कि
मैं रिश्तो से बेरहम हो चुका हूँ!
नीर लिए नैन से कई बार
उन लम्हों को जी चुका हूँ !

Thursday, November 3, 2011

कब सुधरेंगे हम ?




हम पश्चिमी सभ्यता वाले विकसित देशों के लोगो का कई तरह से अनुसरण करते है,जैसे उनकी तरह के  कपडे पहनना,उनकी तरह हेयर स्टाइल रखना इत्यादि| लडकिया विदेशी औरतों को आना आदर्श मानती है तो लड़के भी कम नहीं है किन्तु बड़े खेद का विषय यह है की हम उनकी उन बातों को अपने व्यक्तित्व में शामिल नहीं करते जिसके कारन उनका समाज विकसित हुआ है मसलन उनकी  देश के प्रति प्रेम,आदर्श,कर्त्तव्य,अनुशासन,कानून व्यवस्था और सामाजिक आचरण की सभ्यता|इन देशो में जाने आर पता चलता है की यहाँ रहना है तो सबसे जरुरी है यहाँ की व्यवस्था के अनुसार चलना वहां के कानून का पालन  करना और यदि ऐसा नहीं हुआ तो आप के साथ कोई रियायत नहीं की जाएगी |लोगो के व्यवहार,दूसरे के सोचने के तरीके,और स्वच्छता के प्रति गंभीरता यह सोचने को बाध्य करती है की क्यों न हम भी उनकी तरह  हो जाते ?असल में वहां सबसे ज्यादा व्यवस्था को
महत्व दिया जाता है |वहां व्यवस्था व्यक्ति को चलाती है जबकि हमारे यहाँ इसके  बिलकुल विपरीत
व्यक्ति व्यवस्था चलाता है | इसी  परिस्थिति को बदलना होगा,जब तक यह व्यवस्था नहीं बदलेगी हम नहीं बदलेगें |


Sunday, October 30, 2011

और बात है...

हमारी हर अदा मे
छुपी तेरी मुहब्बत,
तूने महसूस ना किया

ये और बात है!
मैने हरदम तेरे ही

ख्वाब पलको पे सजाए
मुझे ताबीर ना मिली

ये और बात है!
मैने जब भी तुझसे

बात करनी चाही,
मुझे अल्फ़ाज़ ना मिले

ये और बात है!
मै तेरे इश्क के समंदर मे

दूर तक निकला,
मुझे साहिल ना मिला
ये और बात है!
कुदरत ने लिखा था

तुझे मेरी तक़दीर मे,
तेरी किस्मत मे

नही था ये और बात है!





Tuesday, October 25, 2011

शुभ-दीपावली


कल प्रकाश पर्व  दिवाली है,कार्तिक मास की अमावस्या | पौराणिक कथाओ  के अनुसार आज ही के 
दिन भगवान राम लंकाधिपति रावण पर विजयश्री प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे| नगर वासियों ने  पूरी
अयोध्या को दीपकों से सजाकर जगमग कर अपनी खुशियों का इज़हार किया और अपने प्रभु 
श्रीराम का स्वागत किया |
कार्तिक की इसी अमावस्या को द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने बकासुर का बढ़ किया था|
आज ही के दिन जैन धर्म के नायक स्वामी महावीर का निर्वान दिवस है | पंद्रहवी शताब्दी में इसी 
दीपावली  के दिन सिक्ख गुरु नानकदेव की मृत्यु हुयी थी और आज ही के दिन आर्यसमाज
के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने अंतिम साँस ली थी|
इस प्रकार अमावस्या के अंधकार को यम का दूत समझा जाता था और उन्हीकी पूजाअर्चना के लिए
दीप जलाये जाते थे | आज यम को मृतु का देवता मानकर उनकी अचानक कल्पना कर ली गयी है
किन्तु   ऋग्वेद में वे जीवन और मांगल्य के प्रतीक थे|दीपावली का पर्व स्मृतियों का संसार लेकर 
आता है | आइए हम भी दीपदान करे और एक दुसरे के आत्म सम्मान और राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठां 
रखते हुए यह संकल्प ले की हम अपने मन से ईर्ष्या द्वेष,कलुषता,स्वार्थ,लोभ,और अहंकार का अँधेरा 
मिटाकर  उन लोगो लिए दीप जलाएं  जिन्होंने देश की सुरक्षा में अपनी प्राणों की आहूतिया दे दी,और
जिन्होंने आतंकवाद का शिकार होकर अपने प्राण त्याग दिए  और उन लोगो को भी संबल देंने के लिए
जो हमें भ्रस्टाचार से मुक्त कराने की लडाई लड़ रहे हैं | और उन समस्त महा मानवों के लिए जो
इस संसार में प्रेम भाईचारा और बिश्वबंधुत्व के निर्माण के लिए चिंतन और साधना कर रहे है |
                                                                                             




















- अर्जुनराय,सकलडीहा,चंदौली उ०प्र०|  

Sunday, October 23, 2011

तेरे बगैर...

धरती-अम्बर जैसे
एक दूजे से दूर,
मिलने को मचल रहे है!
हम भी उनसे कुछ यूँ  
मिलने को मचल रहे है
यूँ तो राहें है बहुत,
पर  मंजिल नहीं है कोई
आलम ये है कि बहुत 
संभल के चल  रहे है !
शाम को जाकर
अक्स उनके देखा
जो  पन्नो के बीच
सुबह होने तक हम
उन्ही में सिमट  रहे है!
अंधेरी रातों में वो
आये मेरे पास कुछ यूँ
कि दिन के उजाले में
हम उनको ढूंढ रहे है !








Wednesday, October 19, 2011

काश...

काश  'जिन्दगी' को जी
लेना आसान होता !
हर खुशियों को यूहीं
पा लेना आसान होता !
चाह कर भी 'मौत' को  
चुन  पाना आसान होता !
रोते-रोते सच्ची हँसीं
दिलसे हँस पाना आसान होता !
सच्चा एक 'दोस्त' बिलकुल  
 तेरे जैसा पा लेना आसान होता !
यारो से बिछड़ के जाने पर भी
उदास  न  रह पाना आसान  होता !
'गम' ए दिल-दर्द  को हँस के
छुपा लेना आसान होता !
'अश्क' को आँखों से छलकने से पहले
आँखों में ही  रोक पाना आसान होता !
'खून के रिश्ते' जैसे कुछ  'रिश्ते'
तुमसे  बना लेना आसान होता !
आज की दुनिया में दुनिया की
'दुनियादारी' समझ लेना आसान होता !
काश! इस 'आसान' से 'शब्द'  को यूहीं
'आसान' समझ लेना 'आसान' होता !


  

Monday, October 17, 2011

'स्पंदन'


“शाम को आने से पहले सुबह को मना लो,
बिछड़ के जाने से पहले प्यार को बढ़ा लो,
हम भी बिछड़ेंगे कभी ,सबको ही बिछड़ना है,
दुनिया मे प्यार को आहों मे पलना है,
रात को आने से पहले शमा को जला लो,
प्यास को बढ़ने से पहले प्यास को बुझा लो,
आकर 'स्पंदन' पर 'अन्तस्तल' को संवार लो”!
 
 

Monday, October 10, 2011

'झुकी-झुकी सी नज़र'

















































'होठो से छु लो तुम','मेरी जिंदगी किसी और की', 'मेरे नाम का कोई और है', 'अपनी मर्ज़ी के कहाँ अपने 
सफ़र के हम है','पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा','वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी','तुम इतना जो 
मुस्कुरा रहे हो' के साथ-साथ 'होश वालो से न पूछो बेखुदी क्या चीज़ है' जैसे अमर गज़लों के बेताज बादशाह 
महान गज़लों के  गायक जगजीत  सिंह ने आज  बम्बई में निधन  हो गया|वे ७० वर्ष के थे और पिछले माह से ही बीमार चल रहे थे| उन्होंने अपने अलावा अपनी पत्नी चित्रासिंह के साथ दशको तक ग़ज़ल गायकी
और गैर फ़िल्मी गीतों के माध्यम से संगीत के शिखर पर छाये रहे | मानव ह्रदय की सम्वेदनावो को 
झिझोड़ने में महारत हासिल थी | 
इन्होने हिंदी के साथ साथ पंजाबी,उर्दू,सिन्धी,नेपाली,बंगाली,और गुजराती भाषाओ  में भी अपने गीत और 
ग़ज़ल गाये |उन्होंने अपनी सफल्तावो के रिकॉर्ड तोड़ते हुए ८० से भी ज्यादा अलबमो को रिलीज़ कराया और
वे भारत के पहले ऐसे आर्टिस्ट थे जिन्होंने अपनी पत्नी चित्रा सिंह के साथ संगीत के इतिहास में पहली 
बार डिज़िटल रिकार्डिंग कराई |इन्होने ग़ज़ल गायकी को विश्व में संगीत के शिखर पर  पहुचाया | भारत 
सरकार ने इन्हें २००३ मे  भारत के उच्चकोटि के पुरस्कारों में शुमार 'पद्मभूषण' से नवाज़ा  |
आज सम्पूर्ण विश्व के संगीत प्रेमियों  के साथ मै भी अपनी श्रद्धान्ज़ली उन्हें अर्पित करता हूँ और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ की वे इनके अपनों को शक्ति और उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे |








         

Thursday, October 6, 2011

HAPPY DASHAHARA..

शहरा के शुभ अवसर पर आप सभी लोगो  ढेर सारी बधाई व शुभ-कामना !!





 



Wednesday, September 28, 2011

या देवी सर्वभूतेषु...

शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर आप सभी लोगो
को “दुर्गापूजा" व "दशहरा” की ढेर सारी बधाई व शुभ-
कामना! मा शेरावाली आप सभी लोगो के घर परिवार
के उपर सुख-शांति और आरोग्यता बनायें रहें !



या देवी  सर्वभूतेषु  शक्तिरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेणसंस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु मात्ररूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु क्षमारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः
 



















Happy navaratra to you all....

Saturday, September 17, 2011

सीख ले...

कोई  रात  पूनम  
तो  कोई  है अमावस,
चांदनी  उसकी  जो 
चाँद  पाना सीख ले!
यूँ  तो  सभी  आये  हैं
रोते  हुए जहाँ  में,
पर सारा जहाँ है उसका
जो मुस्कराना सीख  ले!
कुछ भी नज़र न आये
अंधेरो में रह कर,
रौशनी  है उसकी
जो शमा जलना सीख ले!
हर  गली  में  मंदिर,
हर राह में मस्जिद है
पर  खुदा  है उसका
जो सर  झुकाना सीख ले!
हर  सीने  में दिल,
हर  दिल में प्यार है,
प्यार  मिलता है उसको
जो दिल लगाना सीख ले!
लोगो  का  काफिला
उसी  के साथ होता है
जो  सच्चे दिल से
रिश्ते निभाना सीख ले!
ख़ुशी  की  तलाश  में
ज़िन्दगी गुज़र जाती है
पर  खुशियाँ उन्हें मिलती  है
जो दूसरे के गम मिटाना सीख ले!






Thursday, September 15, 2011

१४ सितम्बर...

१४ सितम्बर.भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण तिथि,जिसे 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है.यह वही तिथि है जब 'हिंदी' को राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त हुआ| अंग्रेजो के जाने के पश्चात् हुयी संविधान सभा की बैठक में भारत की राजभाषा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुयी थी और यह निर्णय नहीं हो पा रहा था की 'राजभाषा' हिंदी हो अथवा इंग्लिश |
१२ सितम्बर १९४९ को इस मुद्ददे को लेकर संविधान सभा में एक बहस शुरू हुयी जो १४ सितम्बर तक चली|इस बैठक में अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये |तत्कालीन प्रधानमंत्री प०नेहरू ने कहा कि "अंग्रेजी भाषा से किसी राष्ट्र का उत्थान नहीं हो सकता,'राजभाषा' वही होनी चाहिए  जो जन सा मान्य कि भाषा हो,जो जन साधारण के ह्रदय में बसती हो"| डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देने का विशेष अनुरोध किया और कहा कि भारत की राजभाषा 'हिंदी' (देवनागरी) ही होनी चाहिए जो भारत की अधिकांश जनता द्वारा बोली और समझी जाती हो |तत्पश्चात इस बहस का 
समापन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने संक्षिप्त भाषण से किया और कहा कि"भाषा को लेकर किसी प्रकार कि विसंगती अब नहीं होनी चाहिए,हमारा मुल्क अंग्रेजी सत्ता से मुक्त हुआ है और 
ऐसी परिस्थितिया रही कि हम उनकी भाषा का प्रयोग करते थे किन्तु अब हम स्वतंत्र है और हमारी सं-स्कृति,सभ्यता और परंपरा को यदि एक सूत्र में कोई भाषा बांध सकती है तो वह है 'हिंदी', और मुझे वि
श्वास है कि यह भारत के गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी'|इस प्रकार १४सितम्बर १९४९ को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि भारत की 'राजभाषा'  हिंदी(देवनागरी) ही होगी| इसे संविधानकी धारा  ३४३के
अंतर्गत संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया,और हमारी राजभाषा 'हिंदी' हो गयी |
हमारे देश के विद्वानों ने हिंदी को गौरवमयी 'राजभाषा' का दर्ज़ा तो दिला दिया किन्तु आज तक शायद हिंदी अपने पूर्ण विकास तक नहीं पहुँच पाई है| अंग्रेज चले गए किन्तु अंग्रेजी का प्रभाव अब भी
चारो तरफ दिखाई देता है,यदि मै ये कहूँ कि प्रायः आज के शिक्षित युवा अपने आप  को अंग्रेजी के बिना
अपूर्ण समझते है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी? आज हम पूर्णतः हिंदी को अंगीकृत नहीं कर पा रहेंहै तो इसमें केवल दोष हमारा नहीं है, इसके लिए हमारी सरकारें और राजनेता भी दोषी है |आज चारो तरफ 
भूखमरी और बेरोजगारी मुंह फाड़े कड़ी है तो इसके जिम्मेदार कौन है? प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीवि का हेतु नौकरी और व्यवसाय कि चाहत है जिसे प्राप्त करने में अंग्रेजी कि अनिवार्यता हो जाती है, एक सामान्य संस्था में प्रवेश से लेकर साक्षात्कार तक अंग्रेजी में ही होते हैं इसका जिम्मेदार कौन? अभी तक सरकारी कार्यालयों में पूर्णतःहिंदी का बोलबाला न हो पाया तो इसका जिम्मेदार कौन?
अपितु दोष किसी का भी हो उसका निवारण होना चाहिए| गायत्री परिवार के लोग एक सूत्र वाक्य दिए है "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा"|यदि हम अभी भी केवल स्वयं के प्रति सचेत हो जय और हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें तो संभवतः 'हिंदी' अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगी ,और भारतेंदु जी कि ये पंक्तियाँ  सार्थक होंगी-
"निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल ! बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल" !!


             

Sunday, September 11, 2011

जाने कहाँ गए वो दिन ...?

परनाम आ जय भोजपुरी !


























हफ्ता भर के बाद जब  एगो अतवार आवेला त सत्तर गो काम देखाए  लगे ला | आज हाथ-मुंह   धू के जयिसही चाये पिए बैठलिन घरे के मलिकायींन लोग के हुकुम भईल की जाईं तनिका सरसों पेरा 
दिहिन | का करीं चार पसेरी सरसों  लेके मील खातिर चल भईलिन |रस्ता में एगो पुरान संघतिया मिल 
गईले डॉ. अजीत कहे 'आव एगो  चाय पी लेवल जा,बड़ी फुर्सत  से मिलल हवा'|चाय   लेके बयीठालीन जा पिए  त  चाचा उ  अजीत के बाबूजी आ  गईलें,आ  छेड़ दिहले अपना ज़माना के बात.....
"का बताईं बचुआ अब ई शरीर पुरान हो गईल, तनिका चलल दूभर हो गईल बा | एगो  उ ज़माना  रहे
जब हमनी लोग एगो  नेवता करे खातिर छ: छ: कोस पईदल चल    जाईं जा, गमछा में सतुआ गठियाके |
आ   पहुंचला पे का मिले एगो गुड के भेली के दोंका,आ   नहीं त तानी बड़का बाऊ साहेब इहाँ गईला पर एगो
छोटका लेडुआ |ए बचुआ  खाए के आज जईसन दाल-भात-तरकारी सलाद के  साथै न मिलअ, मिले  त उहे 
जोन्हरी,बजरा आ जव क रोटी, थरिया भर रहर,मसुरी  आ खसारी के   दाल के साथ | मन उब्जियाय जाय त कोल्हुआडे जा  के दू लोटा ऊखी के रस  पी लेहल   जा नहीं त घरे क एक   लोटा मन्ठा |तबे त  ए  शरि-रिया में जान रहे,दू -दू मन के बोरा उठाके चल दिहल जा |तनिका  तर-तबेत ख़राब हो जाय त अरुष 
गुरूच के पतई से काम चल जाय,घाव-साव लागला पर  भटकटहिया  आ  भड़भड के  सोर से काम चल जाय |आज त घरे के मेहरारू एतना सुकुआर हो गईल  हईं स  कि घरवे में उन्हान के कुल सुविधा चाही,न  त हमहन के ज़माना में पेट से होखिला  के बाद भी कुल लवन करे जाय,ओहिजिगे जदी कवनो के  बाचा भी हो जाय  त उ   तुरंते हसुआ-बांकी से  नार काट के  लेहनी पर सुता देय स आ  जब  घरे अवे के जून होखे त साथै ले के आवें तब  उ ज़माना में गदेला राखी आ सरसों के तेल से ही मिसाय आ  उनकर खातिर सरसों तीसी के  तकिया बने |आज त पनरह दिन पहिला  हस्पताले जाये के बा |आज के लईकन त उ नवका
-2 तेल,जनम घुट्टी आ  कम्पेलान पी-पी  के बढ़त हवन |दौरी-दौरी  भर-भर  के कोपर आ आम ली आई  जात 
घर भर खाय ,आज त  20 गो रुपिया  में  १ किलो आम मिळत बा जेमा  फारी-फारी कर के घर   भर के 
दियात बा नाता २ रुपिया में सेसर भर घीव आ किशमिश मिळत रहे,खा के  सोझ हो जयल जँव | अब क खायिबा क  मोतईबा? बकिं त उ ज़माना चली गईल बचुआ! आदमी त आदमी गीध आ चिल्होर
जईसन चिरई भी देश जवार छोड़ गईलें,कुल   रह के क करी?अब कवुनो चीज़ में सत ना रह गईल बा अब
मन्ठा महत के  घर आ घीव खरावत के मोहल्ला ना महकत? ना जाने उ दिन कहाँ गईल"? 
"अच्छा चचा! अब  तनिका चले दिही,तेल  पेरावे के बा| फिर भेंट होखी" | ना  चाहते हुए भी कहईके भईल 
सईकिल उठवलिन  आ  चल दिहली,चचा  के बात दिमाग में घूम रहे आ होंठ पर बरबस उ गीत आ रहल बा के "जाने कहाँ गए वो दिन....."?  


 



गर तेरा साथ होता...


























गर तेरा साथ होता ?
जिंदगी को मिला एक मुकाम होता !
भटके पथिक को दिशा औ सफल जीवन, 
जहाँ को  भी एक मस्त चमन,
छाई होती छंटा 'बसंती'
बहारो में आशियाँ होता !
इन अंधेरो में वो उजाला कहाँ ?
इन फिजाओं  में वो खुशबू कहाँ  ?
तेरी जुल्फों के घने कुहरे  में,
मेरा हर  घना साया होता !
दिल में उस वक़्त कोई जज्बात नहीं,
होंठों पर भी कोई थिरकन नहीं,
जब  तेरा आंचल सरकता,
दिल-ए-धडकनों में तेरा  नाम होता !
होंठो को होंठो से  लेता मै थाम,
हाथों  में तेरा हाथ,लवों ए   तेरा नाम,
चाँद भी शर्माता  तब शायद,
जब 'अर्जुन' तेरे साथ होता !
गर तेरा साथ होता...... ....!! 


धनिया बनबे हम…

परनाम जय भोजपुरी !
















धनिया बनबे हम किसनवा,
तू किसानी बनिहा ना!
जोतबे हलवा इंदर बनके,
तू इंद्राणी बनिहा ना !
जोत-कोड के खदिया डालब,
पनिया तू बरसइहा ना!
सुबहे उठ के खेतवां रोज जयिबे,
तू कलेवा लाइहा ना!
खेतवा में जब फसल लहराई,
पवन चली जब पुरवाई !
तोहरा देह मे सिहरन जब  उथिहेन,
ळेबे चूमि होंठ-कलाई !
करिहा खेत मे जाके तू कटनिया,
हम धोवनिया  करबे ना!
अन्न रतन से घर भर जयिहेन,
बहिए गोरस धारा !
देख के आँगन लयिका खेलत,
मनवा  मारे हिलारा !
बनबे तोहार हम सोहाग,
तू सुहागिन बनिहा ना !
धनिया बनबे हम किसनवा,
तू किसानी बनिहा ना !   

















Friday, September 9, 2011

जब भी आता है मौत का ख्याल...

जब  भी आता है 'मौत' का ख्याल,
करते मुझसे प्यार, याद तुम आते हो,
उस वक़्त तड़प कर रह जाता  है मन,
'जिंदगी' ने कई खेल खेले,
परिस्थितियों ने कई रंग बदले,
दिल ने कहा मिट जाएँ हम,
जहाँ न रहे शिकवा, कोई गम,
रहे तो बस एक सुन्दर मन,
मै जानता हूँ तुम बसाए हो,
मुझे तन-मन  और हर 'धड़कन' में,  
चाहते हो इतना कि मै भी न चाहूं ,
सोचता  हूँ मै  न रहूँ?
तो क्या  तुम मेरे बिना रह पाओगे ?
कल्पना करो मेरे बिना  तुम जी पाओगे ? 
स्वप्न 'स्वर्णिम' वो भुला पाओगे ?
आ जाती है याद वो सारी बातें,
और छोड़ देती हैं सवाल सारे,
पर रोक देता है तुम्हारा प्यार!
जब भी आता है 'मौत का ख़याल'!


 





Monday, September 5, 2011

शिक्षक दिवस पर विशेष...

सम्पूर्ण सृष्टि में यदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण कुछ है तो वह है शिक्षक | मनुष्य प्रकृति का सबसे बुद्धि मान प्राणी है और उसके विकास की प्रथम इकाई है शिक्षा| इस प्रकार यदि यह कहा जाय कि 'शिक्षा के बिना सम्पूर्ण जीवन अधूरा है तो यह कदापि गलत होगा | प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जॉन लाक  ने  
कहा है कि 'पौधे का विकास कृषि से होता है और मनुष्य  का शिक्षा के द्वारा'| अर्थात शिक्षा ही वह प्रकाशस्रोत है जिसके द्वारा समस्त संसार आलोकित होता है | इस प्रकार शिक्षा रुपी इस दीपक को जलाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है |क्योंकि व्यक्ति कितनी ही पुस्तकों का संग्रह कर ले किन्तु यदि उसे गुरू रुपी पथ-प्रदर्शक मिले तो वह संसार रुपी इस सागर  को पार नहीं कर सकता ?
शिक्षक सामान्य व्यक्ति नहीं होता वह एक शिल्पकार होता है जो कच्चे घड़े सदृश बालक को सवां- रने का कार्य करता है क्योंकि बालक बिलकुल एक कोरे कागज़ की तरह होता है जिस पर कुछ लिखने का कोई कार्य करता है तो वह है शिक्षक |इसी शिक्षक (गुरू) ने ही राम-कृष्ण,परमहंस,विवेका नंद,दयानंद,टैगोर,गाँधी जैसे युग-निर्माताओ को  तराशा है,गुरू ही वह सांचा है जिसमे महामानवों  के साथ -साथ राष्ट्र नायको को ढाला जाता है |गुरू के चिंतन,वंदन और अभिनन्दन में सम्राटों के भी सर झुंक जाते है,यही वह महागुरु होता है जो धर्म,समाज और राष्ट्र के अनसुलझे रहस्यों का पर्दाफाश कर उन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर देता है |
किन्तु आज मुझे यह भी लिखने में तनिक संकोच नहीं हो रहा है कि आज के इस प्रखर सूर्य को ग्रहण लगते जा रहा है |आज उसके गौरव-गरिमा पर प्रश्न-चिन्ह लगते जा रहा है| वह विभिन्न व्यसनों का शिकार होते जा रहा है| उसके चरित्र पर आशंका कि उंगलिया उठने लगी है |वह एक दूषित राजनीति का शिकार होते जा रहा है |ऐसे में शिक्षक का सम्मान  कहाँ तक सार्थक है?

आज शिक्षक है | भारतीय शिक्षा के पुरोधा डॉ.स्वामी राधाकृष्णन का जन्मदिन | आज ही के दिन सितम्बर १८८८ को आप का जन्म हुआ था |इस दिवस को शिक्षक-दिवस के रूप में पूरा राष्ट्र मना रहा है|और मैं अपने गुरूजनों का प्रति नमन,वंदन और अभिनन्दन करते  हुए यही कहूँगा कि "शिक्षक दिवस की सार्थकता तभी है जब आज के शिक्षक (गुरू) को अपनी  स्वार्थ-सिद्धी का परित्याग करके अपने नैतिक मूल्य को बढ़ाये और जनमानस भी उनके प्रति नतमस्तक होकर शिक्षक के प्रति आभार जताए तभी आज का शिक्षक श्रद्धापात्र बन पाएंगे और तभी राष्ट्र का सही मायने में निर्माण होगा |