Thursday, November 24, 2011

जी चुका हूँ !





दर्द-ए-दिल दुनिया का छिपाकर
मै तुम्हे अब भूल चूका हूँ !
प्यार की कीमत में अपनी हंसी 
गवांकर मै तुम्हे खो चूका हूँ
तेरे गमो का बिस्तर लगाकर 
मै अब बेफिक्र सो चूका हूँ!
तेरी यादों के समंदर में मै 
गहराई तक डूब चूका हूँ !
निशाना अपने दिल का ही
खुद लगाकर तीर खा चुका हूँ!
तुमसे दूरी बना रखी है यूँ कि
मैं रिश्तो से बेरहम हो चुका हूँ!
नीर लिए नैन से कई बार
उन लम्हों को जी चुका हूँ !

1 comment:

  1. सादर आभार मान्यवर!
    ऐसे ही अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव देते रहेंगे ऐसी अपेक्षा है |

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