Sunday, September 11, 2011

जाने कहाँ गए वो दिन ...?

परनाम आ जय भोजपुरी !


























हफ्ता भर के बाद जब  एगो अतवार आवेला त सत्तर गो काम देखाए  लगे ला | आज हाथ-मुंह   धू के जयिसही चाये पिए बैठलिन घरे के मलिकायींन लोग के हुकुम भईल की जाईं तनिका सरसों पेरा 
दिहिन | का करीं चार पसेरी सरसों  लेके मील खातिर चल भईलिन |रस्ता में एगो पुरान संघतिया मिल 
गईले डॉ. अजीत कहे 'आव एगो  चाय पी लेवल जा,बड़ी फुर्सत  से मिलल हवा'|चाय   लेके बयीठालीन जा पिए  त  चाचा उ  अजीत के बाबूजी आ  गईलें,आ  छेड़ दिहले अपना ज़माना के बात.....
"का बताईं बचुआ अब ई शरीर पुरान हो गईल, तनिका चलल दूभर हो गईल बा | एगो  उ ज़माना  रहे
जब हमनी लोग एगो  नेवता करे खातिर छ: छ: कोस पईदल चल    जाईं जा, गमछा में सतुआ गठियाके |
आ   पहुंचला पे का मिले एगो गुड के भेली के दोंका,आ   नहीं त तानी बड़का बाऊ साहेब इहाँ गईला पर एगो
छोटका लेडुआ |ए बचुआ  खाए के आज जईसन दाल-भात-तरकारी सलाद के  साथै न मिलअ, मिले  त उहे 
जोन्हरी,बजरा आ जव क रोटी, थरिया भर रहर,मसुरी  आ खसारी के   दाल के साथ | मन उब्जियाय जाय त कोल्हुआडे जा  के दू लोटा ऊखी के रस  पी लेहल   जा नहीं त घरे क एक   लोटा मन्ठा |तबे त  ए  शरि-रिया में जान रहे,दू -दू मन के बोरा उठाके चल दिहल जा |तनिका  तर-तबेत ख़राब हो जाय त अरुष 
गुरूच के पतई से काम चल जाय,घाव-साव लागला पर  भटकटहिया  आ  भड़भड के  सोर से काम चल जाय |आज त घरे के मेहरारू एतना सुकुआर हो गईल  हईं स  कि घरवे में उन्हान के कुल सुविधा चाही,न  त हमहन के ज़माना में पेट से होखिला  के बाद भी कुल लवन करे जाय,ओहिजिगे जदी कवनो के  बाचा भी हो जाय  त उ   तुरंते हसुआ-बांकी से  नार काट के  लेहनी पर सुता देय स आ  जब  घरे अवे के जून होखे त साथै ले के आवें तब  उ ज़माना में गदेला राखी आ सरसों के तेल से ही मिसाय आ  उनकर खातिर सरसों तीसी के  तकिया बने |आज त पनरह दिन पहिला  हस्पताले जाये के बा |आज के लईकन त उ नवका
-2 तेल,जनम घुट्टी आ  कम्पेलान पी-पी  के बढ़त हवन |दौरी-दौरी  भर-भर  के कोपर आ आम ली आई  जात 
घर भर खाय ,आज त  20 गो रुपिया  में  १ किलो आम मिळत बा जेमा  फारी-फारी कर के घर   भर के 
दियात बा नाता २ रुपिया में सेसर भर घीव आ किशमिश मिळत रहे,खा के  सोझ हो जयल जँव | अब क खायिबा क  मोतईबा? बकिं त उ ज़माना चली गईल बचुआ! आदमी त आदमी गीध आ चिल्होर
जईसन चिरई भी देश जवार छोड़ गईलें,कुल   रह के क करी?अब कवुनो चीज़ में सत ना रह गईल बा अब
मन्ठा महत के  घर आ घीव खरावत के मोहल्ला ना महकत? ना जाने उ दिन कहाँ गईल"? 
"अच्छा चचा! अब  तनिका चले दिही,तेल  पेरावे के बा| फिर भेंट होखी" | ना  चाहते हुए भी कहईके भईल 
सईकिल उठवलिन  आ  चल दिहली,चचा  के बात दिमाग में घूम रहे आ होंठ पर बरबस उ गीत आ रहल बा के "जाने कहाँ गए वो दिन....."?  


 



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