परनाम आ जय भोजपुरी !
हफ्ता भर के बाद जब एगो अतवार आवेला त सत्तर गो काम देखाए लगे ला | आज हाथ-मुंह धू के जयिसही चाये पिए बैठलिन घरे के मलिकायींन लोग के हुकुम भईल की जाईं तनिका सरसों पेरा
दिहिन | का करीं चार पसेरी सरसों लेके मील खातिर चल भईलिन |रस्ता में एगो पुरान संघतिया मिल
गईले डॉ. अजीत कहे 'आव एगो चाय पी लेवल जा,बड़ी फुर्सत से मिलल हवा'|चाय लेके बयीठालीन जा पिए त चाचा उ अजीत के बाबूजी आ गईलें,आ छेड़ दिहले अपना ज़माना के बात.....
"का बताईं बचुआ अब ई शरीर पुरान हो गईल, तनिका चलल दूभर हो गईल बा | एगो उ ज़माना रहे
जब हमनी लोग एगो नेवता करे खातिर छ: छ: कोस पईदल चल जाईं जा, गमछा में सतुआ गठियाके |
आ पहुंचला पे का मिले एगो गुड के भेली के दोंका,आ नहीं त तानी बड़का बाऊ साहेब इहाँ गईला पर एगो
छोटका लेडुआ |ए बचुआ खाए के आज जईसन दाल-भात-तरकारी सलाद के साथै न मिलअ, मिले त उहे
जोन्हरी,बजरा आ जव क रोटी, थरिया भर रहर,मसुरी आ खसारी के दाल के साथ | मन उब्जियाय जाय त कोल्हुआडे जा के दू लोटा ऊखी के रस पी लेहल जा नहीं त घरे क एक लोटा मन्ठा |तबे त ए शरि-रिया में जान रहे,दू -दू मन के बोरा उठाके चल दिहल जा |तनिका तर-तबेत ख़राब हो जाय त अरुष आ
गुरूच के पतई से काम चल जाय,घाव-साव लागला पर भटकटहिया आ भड़भड के सोर से काम चल जाय |आज त घरे के मेहरारू एतना सुकुआर हो गईल हईं स कि घरवे में उन्हान के कुल सुविधा चाही,न त हमहन के ज़माना में पेट से होखिला के बाद भी कुल लवन करे जाय,ओहिजिगे जदी कवनो के बाचा भी हो जाय त उ तुरंते हसुआ-बांकी से नार काट के लेहनी पर सुता देय स आ जब घरे अवे के जून होखे त साथै ले के आवें तब उ ज़माना में गदेला राखी आ सरसों के तेल से ही मिसाय आ उनकर खातिर सरसों तीसी के तकिया बने |आज त पनरह दिन पहिला हस्पताले जाये के बा |आज के लईकन त उ नवका
-2 तेल,जनम घुट्टी आ कम्पेलान पी-पी के बढ़त हवन |दौरी-दौरी भर-भर के कोपर आ आम ली आई जात
घर भर खाय ,आज त 20 गो रुपिया में १ किलो आम मिळत बा जेमा फारी-फारी कर के घर भर के
दियात बा नाता २ रुपिया में सेसर भर घीव आ किशमिश मिळत रहे,खा के सोझ हो जयल जँव | अब क खायिबा क मोतईबा? बकिं त उ ज़माना चली गईल बचुआ! आदमी त आदमी गीध आ चिल्होर
जईसन चिरई भी देश जवार छोड़ गईलें,कुल रह के क करी?अब कवुनो चीज़ में सत ना रह गईल बा अब
मन्ठा महत के घर आ घीव खरावत के मोहल्ला ना महकत? ना जाने उ दिन कहाँ गईल"?
"अच्छा चचा! अब तनिका चले दिही,तेल पेरावे के बा| फिर भेंट होखी" | ना चाहते हुए भी कहईके भईल
सईकिल उठवलिन आ चल दिहली,चचा के बात दिमाग में घूम रहे आ होंठ पर बरबस उ गीत आ रहल बा के "जाने कहाँ गए वो दिन....."?


No comments:
Post a Comment