बहता दरिया है शब्दों का,
तुम छंदों की कश्ती ले लो !
जब गीत कमल खिल जाएँ तब,
तुम भँवरों की मस्ती ले लो !!
टूटे-फूटे थे शब्द वहाँ,
फिर भी वो गीत रचा लाया !
कोई बहारों वाली बात न थी,
फिर भी वो ग़ज़ल सजा लाया !!
परिहासों की उस बस्ती का,
संजीदा हुक्म बजा लाया !!!
उसने सीखा खाकर ठोकर,
तुम सीख यहाँ यूँ ही ले लो !
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो !!
ये मज़हब-वज़हब की बातें,
आपस के रिश्ते तोड़ रहीं !
और सहन-शक्तियाँ भी अब तो,
दुनिया भर से मुँह मोड़ रहीं !!
धर्मों के झूठे गुरुओं की,
तक़रीरें हृदय झंझोड़ रहीं !!!
या दाम चुका कर लो नफ़रत,
या दिल की प्रीत युँ ही ले लो !
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो !!
आदर्शों और बलिदानों की,
उसको तो रस्म निभानी है !
हाँ मातृ-मूमि पर न्यौछावर,
होने की बस यही जवानी है !!
हृदयों को जिसने है जीता,
उसकी ही कोकिल बानी हैं !!!
दिन रोकर काटो या हँसकर,
जो चाहो रीत, यहीं ले लो !
बहता दरिया है शब्दों का
तुम छंदों की कश्ती ले लो !!