Thursday, August 18, 2016

सुनों ...

कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते है,
जहाँ खामोश रहना है वहां मुँह  खोल जाते है, 
कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते है ,
कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते है ,
नयी नस्लो के ये बच्चे जमाने भर की सुनते है ,
मगर माँ बाप बोले तो ये ये बच्चे बोल जाते है, 
आहूत ऊँची दुकानों में काटते जेब सब अपनी ,
मगर मजबूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते है ,
अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीं कहता ,
फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते है, 
हवाओं की तवाही को सभी चुप चाप सहते है ,
चरागों से हुयी गलती तो सारे बोल जाते है ,
बनाते फिरते है रिश्ते ज़माने भर से अक्सर, 
मगर जब घर में हो जरुरत तो रिश्ते भूल जाते है! 



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