Friday, July 22, 2016

प्रसन्न रहो...

बस अकारण प्रसन्न रहो
बस एक यही पल है,
बाकी सब तो 
मन का ही छल है,
कभी हँसी होठों पे 
कभी आँखों में जल है,
कभी गान मिलन के 
कभी विदा की हलचल है.
बस इक लम्हा है 
हाथ हमारे,
बाकी तो बस 
धुंए का बादल है 
इसीलिए कारण मत ढूंढो 
बस सहज रहो,प्रसन्न रहो।




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