Thursday, September 15, 2011

१४ सितम्बर...

१४ सितम्बर.भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण तिथि,जिसे 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है.यह वही तिथि है जब 'हिंदी' को राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त हुआ| अंग्रेजो के जाने के पश्चात् हुयी संविधान सभा की बैठक में भारत की राजभाषा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुयी थी और यह निर्णय नहीं हो पा रहा था की 'राजभाषा' हिंदी हो अथवा इंग्लिश |
१२ सितम्बर १९४९ को इस मुद्ददे को लेकर संविधान सभा में एक बहस शुरू हुयी जो १४ सितम्बर तक चली|इस बैठक में अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये |तत्कालीन प्रधानमंत्री प०नेहरू ने कहा कि "अंग्रेजी भाषा से किसी राष्ट्र का उत्थान नहीं हो सकता,'राजभाषा' वही होनी चाहिए  जो जन सा मान्य कि भाषा हो,जो जन साधारण के ह्रदय में बसती हो"| डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देने का विशेष अनुरोध किया और कहा कि भारत की राजभाषा 'हिंदी' (देवनागरी) ही होनी चाहिए जो भारत की अधिकांश जनता द्वारा बोली और समझी जाती हो |तत्पश्चात इस बहस का 
समापन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने संक्षिप्त भाषण से किया और कहा कि"भाषा को लेकर किसी प्रकार कि विसंगती अब नहीं होनी चाहिए,हमारा मुल्क अंग्रेजी सत्ता से मुक्त हुआ है और 
ऐसी परिस्थितिया रही कि हम उनकी भाषा का प्रयोग करते थे किन्तु अब हम स्वतंत्र है और हमारी सं-स्कृति,सभ्यता और परंपरा को यदि एक सूत्र में कोई भाषा बांध सकती है तो वह है 'हिंदी', और मुझे वि
श्वास है कि यह भारत के गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी'|इस प्रकार १४सितम्बर १९४९ को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि भारत की 'राजभाषा'  हिंदी(देवनागरी) ही होगी| इसे संविधानकी धारा  ३४३के
अंतर्गत संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया,और हमारी राजभाषा 'हिंदी' हो गयी |
हमारे देश के विद्वानों ने हिंदी को गौरवमयी 'राजभाषा' का दर्ज़ा तो दिला दिया किन्तु आज तक शायद हिंदी अपने पूर्ण विकास तक नहीं पहुँच पाई है| अंग्रेज चले गए किन्तु अंग्रेजी का प्रभाव अब भी
चारो तरफ दिखाई देता है,यदि मै ये कहूँ कि प्रायः आज के शिक्षित युवा अपने आप  को अंग्रेजी के बिना
अपूर्ण समझते है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी? आज हम पूर्णतः हिंदी को अंगीकृत नहीं कर पा रहेंहै तो इसमें केवल दोष हमारा नहीं है, इसके लिए हमारी सरकारें और राजनेता भी दोषी है |आज चारो तरफ 
भूखमरी और बेरोजगारी मुंह फाड़े कड़ी है तो इसके जिम्मेदार कौन है? प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीवि का हेतु नौकरी और व्यवसाय कि चाहत है जिसे प्राप्त करने में अंग्रेजी कि अनिवार्यता हो जाती है, एक सामान्य संस्था में प्रवेश से लेकर साक्षात्कार तक अंग्रेजी में ही होते हैं इसका जिम्मेदार कौन? अभी तक सरकारी कार्यालयों में पूर्णतःहिंदी का बोलबाला न हो पाया तो इसका जिम्मेदार कौन?
अपितु दोष किसी का भी हो उसका निवारण होना चाहिए| गायत्री परिवार के लोग एक सूत्र वाक्य दिए है "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा"|यदि हम अभी भी केवल स्वयं के प्रति सचेत हो जय और हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें तो संभवतः 'हिंदी' अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगी ,और भारतेंदु जी कि ये पंक्तियाँ  सार्थक होंगी-
"निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल ! बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल" !!


             

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