Thursday, August 4, 2011

kyo,kya kahenge???

           


       क्यों,क्या कहेंगे???

हर प्रश्न एक सटीक उत्तर ढूढ़ते है! क्या इन्हें मंजिल मिलेगी?
लोग कहते है दुनिया 'रंग-बिरंगी'  है,
 कुछ रंग बड़े 'चटक' है तो कुछ 'धुधले' है!
ज्यादातर चमकीले रंग पसंद किये जाते है!
क्या धुधले रंगों का 'अस्तित्व' है?
क्या इस रंगीन दुनिया में 'रम' जाना सही है या गलत?
पूर्व के अच्छे  कर्मो के आधार पर मानव जन्म होता है ऐसी मान्यता है!
'आनंद' को 'कष्ट' की अपेक्षा ज्यादा लोग 'भोगना' पसंद करते है और इसी आनंद की खोज में प्राणी एक स्थान से दुसरे स्थान तक भटकता रहता है' वह प्रायः वहीँ रुकता है जहाँ उसे आनंद की संभावना दिखाई देती है, उसे कहीं 'क्षणिक' आनंद प्राप्त होता है तो कहीं 'प्रगाढ़'!
क्या उसे 'आनंद' लेना चाहिए? यदि उसके समक्ष 'नैतिकता' और 'सामाजिक बाधाएँ' आयें तो ?
ऐसे में यदि वह 'आनंद' अनुचित लगे तो? यदि यह अनुचित है तो क्यों?
चांदनी रातें सभी को 'मुग्ध' कर देती है! सभी इसकी 'शीतलता'  को 'आत्मसात' करना चाहते है और इस दिल की गहराईयों तक महसूस करना चाहते है तो क्या ये गलत है? फिर 'अँधेरे' के प्रति क्या संवेदना होनी चाहिए? एक क्षण के लिए मान ले की 'चाँद' अपनी 'चांदनी' न बिखेरे तो? तो क्या मन शांत रहेगा? क्या उसे छुप जाना चाहिए? क्या उसे अपनी 'शीतलता' प्रदान  करनी  चाहिए?
'फूल' और 'कली' में कुछ तो अंतर है ही? कुछ लोग फूलो को पसंद करते है तो कुछ लोग कलियों को, किन्तु 'भौरे' को इसमें भेद दिखाई नहीं देता,उनकी प्रकृति ही है सभी पर मंडराना! वैसे ये तो सच  ही है की  'कली' नयी होती है और 'फूल' पुराने, फिर भी 'भौरा' उसमे फर्क नहीं करता!
क्या  'भ्रमर' को 'कुमुदिनी' पर ही मंडराना चाहिए 'कमल' पर नहीं?
यदि वह सभी फूलो की सुगंधी लेता है तो यह उसका 'गुनाह' है? वह 'फूल' और 'कली' सभी की 'सुगन्धि' नहीं ले सकता?   क्या उसे प्रतिबंधित होना चाहिए? यदि हाँ तो क्यों? क्या 'कली' और 'फूल' में सामंजस्य रहेगा? क्या 'भौरे' की 'भावना' वो भी समझती है?यदि हाँ तो फिर ये सामाजिक भेद क्यों?
             "टुकड़े-टुकड़े दिन बीता,तनहा-तनहा रात मिली!
              जिसका जितना 'आँचल' होगा उतनी ही "सौगात" मिली!!                   -अर्जुन राय 

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