Wednesday, September 28, 2011

या देवी सर्वभूतेषु...

शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर आप सभी लोगो
को “दुर्गापूजा" व "दशहरा” की ढेर सारी बधाई व शुभ-
कामना! मा शेरावाली आप सभी लोगो के घर परिवार
के उपर सुख-शांति और आरोग्यता बनायें रहें !



या देवी  सर्वभूतेषु  शक्तिरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु बुद्धि रूपेणसंस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु श्रद्धारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः

या देवी  सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु छायारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु मात्ररूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः


या देवी  सर्वभूतेषु क्षमारूपेण संस्थिता ,
नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमस्तस्यै  नमो नमः
 



















Happy navaratra to you all....

Saturday, September 17, 2011

सीख ले...

कोई  रात  पूनम  
तो  कोई  है अमावस,
चांदनी  उसकी  जो 
चाँद  पाना सीख ले!
यूँ  तो  सभी  आये  हैं
रोते  हुए जहाँ  में,
पर सारा जहाँ है उसका
जो मुस्कराना सीख  ले!
कुछ भी नज़र न आये
अंधेरो में रह कर,
रौशनी  है उसकी
जो शमा जलना सीख ले!
हर  गली  में  मंदिर,
हर राह में मस्जिद है
पर  खुदा  है उसका
जो सर  झुकाना सीख ले!
हर  सीने  में दिल,
हर  दिल में प्यार है,
प्यार  मिलता है उसको
जो दिल लगाना सीख ले!
लोगो  का  काफिला
उसी  के साथ होता है
जो  सच्चे दिल से
रिश्ते निभाना सीख ले!
ख़ुशी  की  तलाश  में
ज़िन्दगी गुज़र जाती है
पर  खुशियाँ उन्हें मिलती  है
जो दूसरे के गम मिटाना सीख ले!






Thursday, September 15, 2011

१४ सितम्बर...

१४ सितम्बर.भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण तिथि,जिसे 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाया जाता है.यह वही तिथि है जब 'हिंदी' को राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त हुआ| अंग्रेजो के जाने के पश्चात् हुयी संविधान सभा की बैठक में भारत की राजभाषा को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुयी थी और यह निर्णय नहीं हो पा रहा था की 'राजभाषा' हिंदी हो अथवा इंग्लिश |
१२ सितम्बर १९४९ को इस मुद्ददे को लेकर संविधान सभा में एक बहस शुरू हुयी जो १४ सितम्बर तक चली|इस बैठक में अनेक विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये |तत्कालीन प्रधानमंत्री प०नेहरू ने कहा कि "अंग्रेजी भाषा से किसी राष्ट्र का उत्थान नहीं हो सकता,'राजभाषा' वही होनी चाहिए  जो जन सा मान्य कि भाषा हो,जो जन साधारण के ह्रदय में बसती हो"| डॉ.श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता देने का विशेष अनुरोध किया और कहा कि भारत की राजभाषा 'हिंदी' (देवनागरी) ही होनी चाहिए जो भारत की अधिकांश जनता द्वारा बोली और समझी जाती हो |तत्पश्चात इस बहस का 
समापन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने संक्षिप्त भाषण से किया और कहा कि"भाषा को लेकर किसी प्रकार कि विसंगती अब नहीं होनी चाहिए,हमारा मुल्क अंग्रेजी सत्ता से मुक्त हुआ है और 
ऐसी परिस्थितिया रही कि हम उनकी भाषा का प्रयोग करते थे किन्तु अब हम स्वतंत्र है और हमारी सं-स्कृति,सभ्यता और परंपरा को यदि एक सूत्र में कोई भाषा बांध सकती है तो वह है 'हिंदी', और मुझे वि
श्वास है कि यह भारत के गौरव को बढ़ाने में सक्षम होगी'|इस प्रकार १४सितम्बर १९४९ को सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि भारत की 'राजभाषा'  हिंदी(देवनागरी) ही होगी| इसे संविधानकी धारा  ३४३के
अंतर्गत संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया,और हमारी राजभाषा 'हिंदी' हो गयी |
हमारे देश के विद्वानों ने हिंदी को गौरवमयी 'राजभाषा' का दर्ज़ा तो दिला दिया किन्तु आज तक शायद हिंदी अपने पूर्ण विकास तक नहीं पहुँच पाई है| अंग्रेज चले गए किन्तु अंग्रेजी का प्रभाव अब भी
चारो तरफ दिखाई देता है,यदि मै ये कहूँ कि प्रायः आज के शिक्षित युवा अपने आप  को अंग्रेजी के बिना
अपूर्ण समझते है तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी? आज हम पूर्णतः हिंदी को अंगीकृत नहीं कर पा रहेंहै तो इसमें केवल दोष हमारा नहीं है, इसके लिए हमारी सरकारें और राजनेता भी दोषी है |आज चारो तरफ 
भूखमरी और बेरोजगारी मुंह फाड़े कड़ी है तो इसके जिम्मेदार कौन है? प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीवि का हेतु नौकरी और व्यवसाय कि चाहत है जिसे प्राप्त करने में अंग्रेजी कि अनिवार्यता हो जाती है, एक सामान्य संस्था में प्रवेश से लेकर साक्षात्कार तक अंग्रेजी में ही होते हैं इसका जिम्मेदार कौन? अभी तक सरकारी कार्यालयों में पूर्णतःहिंदी का बोलबाला न हो पाया तो इसका जिम्मेदार कौन?
अपितु दोष किसी का भी हो उसका निवारण होना चाहिए| गायत्री परिवार के लोग एक सूत्र वाक्य दिए है "हम सुधरेंगे जग सुधरेगा"|यदि हम अभी भी केवल स्वयं के प्रति सचेत हो जय और हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करें तो संभवतः 'हिंदी' अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगी ,और भारतेंदु जी कि ये पंक्तियाँ  सार्थक होंगी-
"निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल ! बिनु निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल" !!


             

Sunday, September 11, 2011

जाने कहाँ गए वो दिन ...?

परनाम आ जय भोजपुरी !


























हफ्ता भर के बाद जब  एगो अतवार आवेला त सत्तर गो काम देखाए  लगे ला | आज हाथ-मुंह   धू के जयिसही चाये पिए बैठलिन घरे के मलिकायींन लोग के हुकुम भईल की जाईं तनिका सरसों पेरा 
दिहिन | का करीं चार पसेरी सरसों  लेके मील खातिर चल भईलिन |रस्ता में एगो पुरान संघतिया मिल 
गईले डॉ. अजीत कहे 'आव एगो  चाय पी लेवल जा,बड़ी फुर्सत  से मिलल हवा'|चाय   लेके बयीठालीन जा पिए  त  चाचा उ  अजीत के बाबूजी आ  गईलें,आ  छेड़ दिहले अपना ज़माना के बात.....
"का बताईं बचुआ अब ई शरीर पुरान हो गईल, तनिका चलल दूभर हो गईल बा | एगो  उ ज़माना  रहे
जब हमनी लोग एगो  नेवता करे खातिर छ: छ: कोस पईदल चल    जाईं जा, गमछा में सतुआ गठियाके |
आ   पहुंचला पे का मिले एगो गुड के भेली के दोंका,आ   नहीं त तानी बड़का बाऊ साहेब इहाँ गईला पर एगो
छोटका लेडुआ |ए बचुआ  खाए के आज जईसन दाल-भात-तरकारी सलाद के  साथै न मिलअ, मिले  त उहे 
जोन्हरी,बजरा आ जव क रोटी, थरिया भर रहर,मसुरी  आ खसारी के   दाल के साथ | मन उब्जियाय जाय त कोल्हुआडे जा  के दू लोटा ऊखी के रस  पी लेहल   जा नहीं त घरे क एक   लोटा मन्ठा |तबे त  ए  शरि-रिया में जान रहे,दू -दू मन के बोरा उठाके चल दिहल जा |तनिका  तर-तबेत ख़राब हो जाय त अरुष 
गुरूच के पतई से काम चल जाय,घाव-साव लागला पर  भटकटहिया  आ  भड़भड के  सोर से काम चल जाय |आज त घरे के मेहरारू एतना सुकुआर हो गईल  हईं स  कि घरवे में उन्हान के कुल सुविधा चाही,न  त हमहन के ज़माना में पेट से होखिला  के बाद भी कुल लवन करे जाय,ओहिजिगे जदी कवनो के  बाचा भी हो जाय  त उ   तुरंते हसुआ-बांकी से  नार काट के  लेहनी पर सुता देय स आ  जब  घरे अवे के जून होखे त साथै ले के आवें तब  उ ज़माना में गदेला राखी आ सरसों के तेल से ही मिसाय आ  उनकर खातिर सरसों तीसी के  तकिया बने |आज त पनरह दिन पहिला  हस्पताले जाये के बा |आज के लईकन त उ नवका
-2 तेल,जनम घुट्टी आ  कम्पेलान पी-पी  के बढ़त हवन |दौरी-दौरी  भर-भर  के कोपर आ आम ली आई  जात 
घर भर खाय ,आज त  20 गो रुपिया  में  १ किलो आम मिळत बा जेमा  फारी-फारी कर के घर   भर के 
दियात बा नाता २ रुपिया में सेसर भर घीव आ किशमिश मिळत रहे,खा के  सोझ हो जयल जँव | अब क खायिबा क  मोतईबा? बकिं त उ ज़माना चली गईल बचुआ! आदमी त आदमी गीध आ चिल्होर
जईसन चिरई भी देश जवार छोड़ गईलें,कुल   रह के क करी?अब कवुनो चीज़ में सत ना रह गईल बा अब
मन्ठा महत के  घर आ घीव खरावत के मोहल्ला ना महकत? ना जाने उ दिन कहाँ गईल"? 
"अच्छा चचा! अब  तनिका चले दिही,तेल  पेरावे के बा| फिर भेंट होखी" | ना  चाहते हुए भी कहईके भईल 
सईकिल उठवलिन  आ  चल दिहली,चचा  के बात दिमाग में घूम रहे आ होंठ पर बरबस उ गीत आ रहल बा के "जाने कहाँ गए वो दिन....."?  


 



गर तेरा साथ होता...


























गर तेरा साथ होता ?
जिंदगी को मिला एक मुकाम होता !
भटके पथिक को दिशा औ सफल जीवन, 
जहाँ को  भी एक मस्त चमन,
छाई होती छंटा 'बसंती'
बहारो में आशियाँ होता !
इन अंधेरो में वो उजाला कहाँ ?
इन फिजाओं  में वो खुशबू कहाँ  ?
तेरी जुल्फों के घने कुहरे  में,
मेरा हर  घना साया होता !
दिल में उस वक़्त कोई जज्बात नहीं,
होंठों पर भी कोई थिरकन नहीं,
जब  तेरा आंचल सरकता,
दिल-ए-धडकनों में तेरा  नाम होता !
होंठो को होंठो से  लेता मै थाम,
हाथों  में तेरा हाथ,लवों ए   तेरा नाम,
चाँद भी शर्माता  तब शायद,
जब 'अर्जुन' तेरे साथ होता !
गर तेरा साथ होता...... ....!! 


धनिया बनबे हम…

परनाम जय भोजपुरी !
















धनिया बनबे हम किसनवा,
तू किसानी बनिहा ना!
जोतबे हलवा इंदर बनके,
तू इंद्राणी बनिहा ना !
जोत-कोड के खदिया डालब,
पनिया तू बरसइहा ना!
सुबहे उठ के खेतवां रोज जयिबे,
तू कलेवा लाइहा ना!
खेतवा में जब फसल लहराई,
पवन चली जब पुरवाई !
तोहरा देह मे सिहरन जब  उथिहेन,
ळेबे चूमि होंठ-कलाई !
करिहा खेत मे जाके तू कटनिया,
हम धोवनिया  करबे ना!
अन्न रतन से घर भर जयिहेन,
बहिए गोरस धारा !
देख के आँगन लयिका खेलत,
मनवा  मारे हिलारा !
बनबे तोहार हम सोहाग,
तू सुहागिन बनिहा ना !
धनिया बनबे हम किसनवा,
तू किसानी बनिहा ना !   

















Friday, September 9, 2011

जब भी आता है मौत का ख्याल...

जब  भी आता है 'मौत' का ख्याल,
करते मुझसे प्यार, याद तुम आते हो,
उस वक़्त तड़प कर रह जाता  है मन,
'जिंदगी' ने कई खेल खेले,
परिस्थितियों ने कई रंग बदले,
दिल ने कहा मिट जाएँ हम,
जहाँ न रहे शिकवा, कोई गम,
रहे तो बस एक सुन्दर मन,
मै जानता हूँ तुम बसाए हो,
मुझे तन-मन  और हर 'धड़कन' में,  
चाहते हो इतना कि मै भी न चाहूं ,
सोचता  हूँ मै  न रहूँ?
तो क्या  तुम मेरे बिना रह पाओगे ?
कल्पना करो मेरे बिना  तुम जी पाओगे ? 
स्वप्न 'स्वर्णिम' वो भुला पाओगे ?
आ जाती है याद वो सारी बातें,
और छोड़ देती हैं सवाल सारे,
पर रोक देता है तुम्हारा प्यार!
जब भी आता है 'मौत का ख़याल'!


 





Monday, September 5, 2011

शिक्षक दिवस पर विशेष...

सम्पूर्ण सृष्टि में यदि सर्वाधिक महत्वपूर्ण कुछ है तो वह है शिक्षक | मनुष्य प्रकृति का सबसे बुद्धि मान प्राणी है और उसके विकास की प्रथम इकाई है शिक्षा| इस प्रकार यदि यह कहा जाय कि 'शिक्षा के बिना सम्पूर्ण जीवन अधूरा है तो यह कदापि गलत होगा | प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री जॉन लाक  ने  
कहा है कि 'पौधे का विकास कृषि से होता है और मनुष्य  का शिक्षा के द्वारा'| अर्थात शिक्षा ही वह प्रकाशस्रोत है जिसके द्वारा समस्त संसार आलोकित होता है | इस प्रकार शिक्षा रुपी इस दीपक को जलाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है |क्योंकि व्यक्ति कितनी ही पुस्तकों का संग्रह कर ले किन्तु यदि उसे गुरू रुपी पथ-प्रदर्शक मिले तो वह संसार रुपी इस सागर  को पार नहीं कर सकता ?
शिक्षक सामान्य व्यक्ति नहीं होता वह एक शिल्पकार होता है जो कच्चे घड़े सदृश बालक को सवां- रने का कार्य करता है क्योंकि बालक बिलकुल एक कोरे कागज़ की तरह होता है जिस पर कुछ लिखने का कोई कार्य करता है तो वह है शिक्षक |इसी शिक्षक (गुरू) ने ही राम-कृष्ण,परमहंस,विवेका नंद,दयानंद,टैगोर,गाँधी जैसे युग-निर्माताओ को  तराशा है,गुरू ही वह सांचा है जिसमे महामानवों  के साथ -साथ राष्ट्र नायको को ढाला जाता है |गुरू के चिंतन,वंदन और अभिनन्दन में सम्राटों के भी सर झुंक जाते है,यही वह महागुरु होता है जो धर्म,समाज और राष्ट्र के अनसुलझे रहस्यों का पर्दाफाश कर उन अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर देता है |
किन्तु आज मुझे यह भी लिखने में तनिक संकोच नहीं हो रहा है कि आज के इस प्रखर सूर्य को ग्रहण लगते जा रहा है |आज उसके गौरव-गरिमा पर प्रश्न-चिन्ह लगते जा रहा है| वह विभिन्न व्यसनों का शिकार होते जा रहा है| उसके चरित्र पर आशंका कि उंगलिया उठने लगी है |वह एक दूषित राजनीति का शिकार होते जा रहा है |ऐसे में शिक्षक का सम्मान  कहाँ तक सार्थक है?

आज शिक्षक है | भारतीय शिक्षा के पुरोधा डॉ.स्वामी राधाकृष्णन का जन्मदिन | आज ही के दिन सितम्बर १८८८ को आप का जन्म हुआ था |इस दिवस को शिक्षक-दिवस के रूप में पूरा राष्ट्र मना रहा है|और मैं अपने गुरूजनों का प्रति नमन,वंदन और अभिनन्दन करते  हुए यही कहूँगा कि "शिक्षक दिवस की सार्थकता तभी है जब आज के शिक्षक (गुरू) को अपनी  स्वार्थ-सिद्धी का परित्याग करके अपने नैतिक मूल्य को बढ़ाये और जनमानस भी उनके प्रति नतमस्तक होकर शिक्षक के प्रति आभार जताए तभी आज का शिक्षक श्रद्धापात्र बन पाएंगे और तभी राष्ट्र का सही मायने में निर्माण होगा |