Saturday, February 11, 2012

इक्कीसवीं सदी में ढूढ़ते रह जाओगे !(3)

चीजों में कुछ चीज़े,
बातों में कुछ बातें,
जिन्हें कभी नहीं,
देख पावओगे!
इक्कीसवीं सदी में,
ढूढ़ते रह जाओगे!!

गाता हुआ गांव,
पनघट की छांव,
किसानो का  हल,
मेहनत का फल,
मेहमान की आस,
छाछ की गिलास,
चहकता सा पनघट,
लम्बा सा घूँघट,
लज्जा से कापते होट,
पहलवान का लंगोट,
कट्टरता का उपाय,
सबकी एक राय,
मरने का मज़ा,
जीने का स्वाद,
नेता जी को चुनाव,
जितने के बाद,
दुर्घटना से रहित साल,
गुदरी में होने वाले लाल,
साँस लेने को ताज़ी हवा,
खैराती हस्पताल में दवा,
आपस में प्यार,
भरा पूरा परिवार,
बातचीत का रिवाज़,
दोस्ती का लिहाज़ ,
सड़क किनारे प्यावू,
बुलाने में तावू ,
दो रुपिए उधार,
नेता जी ईमानदार,
ढूढ़ते रह जाओगे!!

2 comments:

  1. बहुत खूब तीनों कविताये बहुत बढ़िया लगी

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  2. सादर आभार मान्यवर! ऐसे ही अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव देते रहेंगे ऐसी अपेक्षा है |

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