Friday, July 29, 2016

सुना है...

माननीय वित्त मंत्री जी ने सदन को बताया कि विश्वस्तर पर दाल का उत्पादन कम हुआ है इसलिए दाल की कीमतें बढ़ी हैं। चलिए मान लेते हैं आपकी बात। विश्वस्तर पर क्रूड आयल की कीमतें बहुत कम हो गयीं लेकिन आपने उसका पूरा लाभ नहीं दिया जनता को। आपने एक्साइज ड्यूटी बढ़ा कर अपना खज़ाना भरना शुरू कर दिया। अगर इसी खजाने से दाल पर कुछ सब्सिडी दे दें  तो गरीबों की दाल रोटी चल जायेगी। लेकिन आप ऐसा नहीं करेंगे बल्कि कल अगर दाल की कीमत कम भी हो गयी तो आप उस पर भी एक्साइज ड्यूटी लगा कर वर्तमान मूल्य पर स्थिर कर देंगे क्योंकि तब तक लोगों की नए दाम की आदत हो जायेगी।कुछ लोग दाल का स्वाद भी भूल चुके होंगे। सत्य है कि विकास के लिए अगर पेट का बलिदान भी करना पड़े तो यह राष्ट्रधर्म है। राष्ट्र पर घोर संकट है ऐसे में राष्ट्रविरोधियों द्वारा दाल खाने की बात करना सरकार को अस्थिर करने और राष्ट्र की गरिमा को जानबूझ कर क्षति पँहुचाने का षड्यंत्र है। आप इससे निबटने में लिए तैयार हैं। हो सकता है कल दाल की बात करने वालों को राष्ट्र रक्षक दौड़ा कर पीटना शुरू कर दें।
मैं अभी से अपनी सुरक्षा कर लेता हूँ। भारत माता की जय
   




Sunday, July 24, 2016

मैं शरीर नहीं हूँ...

 

जीव जिस रूप में आता है उसी रूप में चला जाता है। न आने के समय कोई साथ न जाने के समय। यात्रा के पड़ाव में अनेक संगी साथी अवश्य हो जाते हैं, सो सुखमय यात्रा के लिए जहाँ यह आवश्यक है कि सब लोग प्रेमभाव से चलें, नीति और सदाचार का पालन करें, विश्व-बंधुत्व की भावना की अनुशीलन करें वहाँ यह भी नितान्त आवश्यक है कि अपनी एकाकी यात्रा के लिए भी पूर्ण तैयारी करते हुए आगे बढ़े। निराश, भय और विक्षोभ उस महाशून्य की यात्रा में बाधक न बनें इसके लिए जो भी अभी तैयार नहीं हुआ उसका यहाँ आना निरर्थक गया।

“मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर अवश्य मेरा है। दूर से आता रथ तो दिखाई देता है किन्तु रथी नहीं। अपनी दृष्टि का छोटा होना-अपनी दर्शन की क्षमता का संकुचित होना मात्र कारण है अन्यथा बुद्धि जानती है कि रथ में जुते हुए घोड़ों को सीधे रास्ते लाने ले जाने वाले वाहन में कोई रथी अवश्य बैठा होगा। शरीर भी एक रथ है, आत्मा उसका सारथी, इन्द्रियाँ ही वह घोड़े है जिन पर नियन्त्रण रखकर सारथी उन्हें जिधर चाहे ले जा सकता है। महत्व रथ और घोड़े का नहीं उसके स्वामी-आत्मा का है सो अपनी दृष्टि, अपनी बुद्धि, अपना ज्ञान और तर्क इतना संकीर्ण नहीं होना चाहिए कि आत्मा को भी न पहचाना जा सके।

घोड़े (इन्द्रियाँ) थके, रथ (शरीर) टूटे इसके पूर्व हमें उस स्थान तक पहुँच ही लेना चाहिये महाकाल की महा निशा में सुखपूर्वक विश्राम कर जहाँ से आगे की यात्रा में बढ़ा जा सके। भारी मन थके शरीर भटके हुए पथ की यात्रा कष्टप्रद होती है इसलिये इस जीवन यात्रा को बहुत सोच समझ कर जीना चाहिये।

-भगवान् बुद्ध

अखंड ज्योति Nov - 1971



Friday, July 22, 2016

प्रसन्न रहो...

बस अकारण प्रसन्न रहो
बस एक यही पल है,
बाकी सब तो 
मन का ही छल है,
कभी हँसी होठों पे 
कभी आँखों में जल है,
कभी गान मिलन के 
कभी विदा की हलचल है.
बस इक लम्हा है 
हाथ हमारे,
बाकी तो बस 
धुंए का बादल है 
इसीलिए कारण मत ढूंढो 
बस सहज रहो,प्रसन्न रहो।




Wednesday, July 13, 2016

ख्वाब ऐसे हैं...

कुछ ख्वाब ऐसे हैं कि 
दिल में रहते ही नहीं,
और दिल से 
निकलते भी नहीं 
अजीब सा 
रिश्ता है खुद से 
उन ख्वाबों का 
मिलने से इंकार 
भी नहीं लेकिन 
मिलते भी नहीं 
हर सिम्त 
हर कदम 
साथ चलते है 
लेकिन पांवों से 
लिपटते भी नहीं 
और बिछड़ते भी नहीं