Thursday, January 26, 2017

२६ जनवरी अमर रहे...

किसी राष्ट्र का विकास इस बात पर निर्भर है, कि उस राष्ट्र के नागरिक स्वस्थ,, सुशिक्षित,,संस्कारित और प्रगतिवादी बिचारधारा के हों। अपने अधिकार,,कर्तव्य,,रीति,, नीति,, परम्पराएँ और इतिहास कोअपने आचरण से मान्यता प्रदान करते हों। अन्धविश्वास और कुरीतियों से दूर रहकर समय, देशकाल और वातावरण के अनुसार सृजन वादी दृष्टिकोण अपनाते हो। इसका प्रमुख माध्यम शिक्षा है,, जो औपचारिक और अनौपचारिक पद्धति से गर्भावस्था से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती रहती है। मनुष्य सदैव सीखता रहता है, कभी पूर्ण नही होता है।एक विद्वान् ब्यक्ति मुर्ख से भी बहुत सीख लेता है,, लेकिन एक मुर्ख ब्यक्ति विद्वान् से भी कुछ नही सीख पाता है।दुनिया में सबसे कुछ न कुछ सीख प्राप्त होती है।यह बहुत कुछ सीखने वाले की रूचि और क्षमता पर निर्भर होता है। शिक्षा की आधार शिला प्राथमिक शिक्षा है।जहाँ06 से14 वयवर्ग के बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं। आज प्रधानमन्त्री, मानवसंसाधन विकास मंत्री,, मुख्यमंत्री,,शिक्षामंत्री,,शासन,,प्रशासन और शिक्षा बिभाग, बेसिक शिक्षा में गुणात्मक सुधार की बात सभी करते हैं,लेकिन सुधार के मार्ग कीबाधाओं को दूर करने का समुचित और सार्थक प्रयास किसी के द्वारा नही किया जा रहा है। इनके बच्चे शायद बेसिक शिक्षा परिषद केसरकारी विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करते हों। लग रहा है कि सरकारी तन्त्र को अपने ही ब्यवस्था पर बिश्वास नही है।  बेसिक शिक्षा परिषद के सरकारी विद्यालय जैसे गरीब, लाचार,, असहाय और संसाधनविहीन लोगो के लिए हो। थोड़ी सामर्थ्य रखने वालों के बच्चों के लिए और विद्यालय हों।दोहरी भाषा,,दोहरा आचरण और निजी विद्यालयों को बढ़ावा देने के बजाय ब्यवस्थापिक,, कार्यपालिका,,न्यायपालिका,,औरसरकारी कर्मचारी के बच्चों का प्रवेश बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में अनिवार्य हो जाय,, तो आंशिक सुधार स्वतः हो जायेगा। क्या? हमारे नेता और अधिकारी गण ऐसा करने का साहसिक कदम उठाएंगे। आज देश के कई विकसित राज्य मे प्राथमिक स्तर पर सरकारी विद्यालयों में प्रवेश प्रतिशत बहुत कम है। कुछ राज्य में यह दर थोड़ा संतोष जनक है। निम्नांकित विवरण वास्तविकता प्रदर्शित कर रहे हैं। आज प्रतियोगिता परीक्षाओं को दृष्टिगत प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ब्यवस्था में वास्तविक सुधार की आवश्यकता है। 



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