सामान्यतः यह आम धारणा रही है कि कोई ज्यादा अच्छी बात होने पर उसे प्रकट नहीं करना चाहिए क्योंकि उसे लोगो कि नज़र लग सकती है| मन में ऐसी भावना होने के कारण लोग अपनी खुशियों का भरपूर आनंद नहीं उठा पाते| जो लोग अपनी खुशियों को हर्षोल्लास के साथ मनाते है वे ज्यादा संतुष्ट दिखाई देते है जबकि अपनी खुशियों को छिपा कर रखने वाले संतुष्ट ही नहीं तनावग्रस्त भी रहते है| मनोवैज्ञानिको का मानना है कि जो लोग अपने जीवन में अपनी उपलब्धियों को स्वीकार कर खुशियां मनाते है उन्हें बहुत संतोष मिलता है और जो समय समय पर आने वाले ऐसे मौके यूं ही गुजार देते है वे जीवन से असन्तुष्ट ही रह जाते है|
आप अपने अंदर की खुशी की प्रतिक्रिया जितने प्रभावशाली ढंग से प्रकट करेंगे आप को उतनी ही संतुष्टि प्राप्त होगी| हमारी प्रवृत्ति होती है कि हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को ज्यादा महत्व देते है व सकारात्मक भावनाओं को नगण्य समझते हैं और जीवन को ज्यादा दुखी बना लेते हैं|इसलिए हमें चाहिए कि हम सुख के भावों को मन में दबा कर रखने के बजाय उन्हें खुलकर प्रकट करें और दूसरे के साथ बांटे|
आप अपने अंदर की खुशी की प्रतिक्रिया जितने प्रभावशाली ढंग से प्रकट करेंगे आप को उतनी ही संतुष्टि प्राप्त होगी| हमारी प्रवृत्ति होती है कि हम अपनी नकारात्मक भावनाओं को ज्यादा महत्व देते है व सकारात्मक भावनाओं को नगण्य समझते हैं और जीवन को ज्यादा दुखी बना लेते हैं|इसलिए हमें चाहिए कि हम सुख के भावों को मन में दबा कर रखने के बजाय उन्हें खुलकर प्रकट करें और दूसरे के साथ बांटे|

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