आज हमारा देश अपने गड्तंत्र दिवस की ६३वी वर्षगांठ मना रहा है और सम्पूर्ण जनता इसके विभिन्न
आयोजनों को अपलक निहार रही है। सुनाहै की गड्तंत्र होने में काफी मशक्कतों का सामना करना पड़ा था |
श्रम करना पड़ा,खून बहाना पड़ा और देश के देशभक्तों को शहीद होना पड़ा तब जाकर हम गडतंत्र
देश का दर्ज़ा पासके। वस्तुतः केवल समारोह आयोजित करने मात्र से कुछ संभव नहीं है।हमें अपने शौर्य पराक्रम और खोये हुए आत्मविश्वास को प्राप्त करना होगा,कुछ संकल्प लेने होंगे।मसलन भ्रष्टाचार,आतंक और कुपोषण जैसी कुप्रथावों का खात्मा करना होगा। देश और समाज में बह रही परिवर्तन की बयार को भापना होगा।मूलभूत चिन्ताओ को वैचारिक धरातल पर लाकर उसका
निस्तारण करना होगा।धर्मगुरुवो चिंतको और बुध्धिजिवियो की मेधा का दोहन हमें राष्टहित में अवश्य
ही करना करना होगा ताकि हम अपनी राष्ट्रिय अस्मिता को अक्षुर रख सके । आज के दौर में हम अपने को किंकर्तव्यमूढ़ सा क्यों महसूस कर रहे हैं ।क्यों 'कालाधन'की चर्चा से घबरातें है क्यों नहीं
'सुशासन' की नीव पड़ने देते? सब कुछ स्थगित करने और टालने की परंपरा क्यों बनती जा रही है?आज हमारा गड्तंत्र परिपक्वावस्था में है फिर परिपक्व होते हुए भी फिसलन कैसी ? हम अपसंस्कृति की ओर बढ़ते जा रहे है?संयम का अभाव और दुर्व्यसन का प्रभाव क्यों बढ़ रहा है? हमें इन सभी बुनियादी और मुफीद बातों के आईने में अपनी तरक्की का फलसफा पेश करना होगा।
इसी दरख्वास्त के साथ की रसूख को बचा के रखे ताकि मुल्क की फिजा न ख़राब हो।और इसी के
साथ गड्तंत्र दिवस की ढेर सारी मुबारकबाद !!
आयोजनों को अपलक निहार रही है। सुनाहै की गड्तंत्र होने में काफी मशक्कतों का सामना करना पड़ा था |
श्रम करना पड़ा,खून बहाना पड़ा और देश के देशभक्तों को शहीद होना पड़ा तब जाकर हम गडतंत्र
देश का दर्ज़ा पासके। वस्तुतः केवल समारोह आयोजित करने मात्र से कुछ संभव नहीं है।हमें अपने शौर्य पराक्रम और खोये हुए आत्मविश्वास को प्राप्त करना होगा,कुछ संकल्प लेने होंगे।मसलन भ्रष्टाचार,आतंक और कुपोषण जैसी कुप्रथावों का खात्मा करना होगा। देश और समाज में बह रही परिवर्तन की बयार को भापना होगा।मूलभूत चिन्ताओ को वैचारिक धरातल पर लाकर उसका
निस्तारण करना होगा।धर्मगुरुवो चिंतको और बुध्धिजिवियो की मेधा का दोहन हमें राष्टहित में अवश्य
ही करना करना होगा ताकि हम अपनी राष्ट्रिय अस्मिता को अक्षुर रख सके । आज के दौर में हम अपने को किंकर्तव्यमूढ़ सा क्यों महसूस कर रहे हैं ।क्यों 'कालाधन'की चर्चा से घबरातें है क्यों नहीं
'सुशासन' की नीव पड़ने देते? सब कुछ स्थगित करने और टालने की परंपरा क्यों बनती जा रही है?आज हमारा गड्तंत्र परिपक्वावस्था में है फिर परिपक्व होते हुए भी फिसलन कैसी ? हम अपसंस्कृति की ओर बढ़ते जा रहे है?संयम का अभाव और दुर्व्यसन का प्रभाव क्यों बढ़ रहा है? हमें इन सभी बुनियादी और मुफीद बातों के आईने में अपनी तरक्की का फलसफा पेश करना होगा।
इसी दरख्वास्त के साथ की रसूख को बचा के रखे ताकि मुल्क की फिजा न ख़राब हो।और इसी के
साथ गड्तंत्र दिवस की ढेर सारी मुबारकबाद !!

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