Friday, September 5, 2014
याद है मुझे ...
Sunday, August 31, 2014
क्या कहें?
एक आदमी हूँ मैं, बिलकुल सीधा एक आम आदमी
रोज उठकर लड़ता हूँ ज़िन्दगी से, सिर्फ जीने के लिए
करता हूँ फरेब, बोलता हूँ झूठ भी, सिर्फ जीने के लिए
अन्याय कर भी लेता हूँ,सह भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
झूठे ही हंस भी लेता हूँ, सच में रो भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
कभी कभी आती है आवाज अंदर से कि विद्रोह कर दूँ
पर नही कर पाता, परिवार चलाने के लिए और जीने के लिए
रोज रात बिस्तर पर घूम जाते हैं आँखों में, मेरे गलत काम
खुद से सब बदलने का वायदा करते कट जाती है सारी रात
सुबह बेचैन मन, भारी आँखें और बेदम शरीर लिए
भूलकर सारे गुनाह और वादे, चल पड़ता हूँ फिर उसी ओर
जहाँ मेरा दम घुटता है, पाँव छिलते हैं, ज़मीर मरता है
क्योंकि घर की जिम्मेदारियां हैं कन्धों पर, ढोता हूँ खुद की लाश
अपनी ख़ुशी से जहर पीने के लिए, सिर्फ जीने के लिए
रोज उठकर लड़ता हूँ ज़िन्दगी से, सिर्फ जीने के लिए
करता हूँ फरेब, बोलता हूँ झूठ भी, सिर्फ जीने के लिए
अन्याय कर भी लेता हूँ,सह भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
झूठे ही हंस भी लेता हूँ, सच में रो भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
कभी कभी आती है आवाज अंदर से कि विद्रोह कर दूँ
पर नही कर पाता, परिवार चलाने के लिए और जीने के लिए
रोज रात बिस्तर पर घूम जाते हैं आँखों में, मेरे गलत काम
खुद से सब बदलने का वायदा करते कट जाती है सारी रात
सुबह बेचैन मन, भारी आँखें और बेदम शरीर लिए
भूलकर सारे गुनाह और वादे, चल पड़ता हूँ फिर उसी ओर
जहाँ मेरा दम घुटता है, पाँव छिलते हैं, ज़मीर मरता है
क्योंकि घर की जिम्मेदारियां हैं कन्धों पर, ढोता हूँ खुद की लाश
अपनी ख़ुशी से जहर पीने के लिए, सिर्फ जीने के लिए
Sunday, May 11, 2014
ठीक नहीं...
कौन समझाए उन्हें इतनी जलन ठीक नहीं,
जो ये कहते हैं मेरा चाल-चलन ठीक नहीं..
झूठ को सच में बदलना भी हुनर है लेकिन,
अपने ऐबों को छुपाने का ये फन ठीक नहीं..
उनकी नीयत में ख़लल है तो घर से ना निकलें,,
तेज़ बारिश में ये मिट्टी का बदन ठीक नहीं..
शौक़ से छोड़ के जाएँ ये चमन वो पंछी,
जिनको लगता है ये अपना वतन ठीक नहीं..
हर गली चुप सी रहे, और रहें सन्नाटे,
मेरे इस मुल्क में ऐसा भी अमन ठीक नहीं..
जो लिबासों को बदलने का शौक़ रखते थे,
आखरी वक़्त ना कह पाए क़फ़न ठीक नहीं..
जो ये कहते हैं मेरा चाल-चलन ठीक नहीं..
झूठ को सच में बदलना भी हुनर है लेकिन,
अपने ऐबों को छुपाने का ये फन ठीक नहीं..
उनकी नीयत में ख़लल है तो घर से ना निकलें,,
तेज़ बारिश में ये मिट्टी का बदन ठीक नहीं..
शौक़ से छोड़ के जाएँ ये चमन वो पंछी,
जिनको लगता है ये अपना वतन ठीक नहीं..
हर गली चुप सी रहे, और रहें सन्नाटे,
मेरे इस मुल्क में ऐसा भी अमन ठीक नहीं..
जो लिबासों को बदलने का शौक़ रखते थे,
आखरी वक़्त ना कह पाए क़फ़न ठीक नहीं..
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