मुमकिन है सफर हो आंसा आ साथ चलकर देखेँ।
कुछ तुम भी बदलकर देखो कुछ हम भी बदलकर देखेँ।।
Sunday, May 5, 2013
दर्पण
वह दर्पण जो तुम लाये थे उसके रुख को मोड दिया है. पर दूसरे में भी तुम थे उसको मैंने तोड़ दिया है मगर अब तो ऐसा लगता है.. कि हर दर्पण में तुम्ही तुम हो इसलिए अब तो मैंने दर्पण के सामने ही जाना छोड़ दिया है...
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