Sunday, November 29, 2015

संदेह...

संदेह से देखना तेरी आदत है,
पर मेरी यारी भी देख..
खामियां मुझ में लाख सही,
पर मेरी वफादारी भी देख..
यूँ न कर मुझे अलग खुद से,
मेरी लाचारी भी देख ले
झुकी तेरे कदमों  में ,
तेरे आगे सब हारी भी देख..

मित्रता का अंत...

आजकल मित्रता करना एकदम आसान हो गया है,घर बाहर ऑफिस हो या स्कूल एक दूसरे का मित्र बाने की होड सी मच गयी है|पर ये मित्रता आज की स्वार्थी दुनिया में कुछ ही पग दम तोड़ देती है| दो महिलाओं या दो पुरुषो के बीच कितनी ही प्रगाढ़ मित्रता क्यों न हो यह मित्रता स्थायी नहीं रह सकती|
समय व परिस्थितियों के कारण मित्रता की स्थिति बनती और बिगड़ती रहती है| जीवन में समय समय पर होने वाले परिवर्तनों जैसे निवास,विवाह,तलाक,नौकरी-प्रमोसन जैसी समस्याओं के कारण व्यक्ति इतना व्यस्त हो जाता है कि चाहते हुये भी इस मित्रता को निभा नहीं पाता और 50% दोस्ती ऐसे ही समाप्त हो जाती है|
प्यार मुहब्बत और मित्रता में आपस में दो दिलो कि भावनाओं का आदान प्रदान होता है और जब किसी एक तरफ से आदान प्रदान में कमी होती है तो मित्रता कि कसौटी में फर्क आने लगता है और लगभग 20% मित्रताओं का अंत हो जाता है |
दो मित्रों के रिश्तों के बीच में एक दूसरे के प्रति ईमानदारी और वफादारी की पारदर्शिता होनी चाहिए क्योंकि ये भावनात्मक रिश्ते विश्वास की कसौटी पर कसे जाते है और इसमें अविश्वास का कीड़ा लग गया तो 20% मित्रताओं का अंत अविश्वास की भेंट चढ़ जाता है और तो और आज एक दूसरे से आगे निकलने के चक्कर में दोस्ती मे ईर्ष्या भी एक दूसरे मित्र के बीच अविश्वास की खाई को बढ़ाती जा रही है|
मित्रता में मधुर संबंध सदैव बने रहे इसके लिए क्या किया जाय? हमें मित्रता के इस भावात्मक रिश्ते में दिन प्रतिदिन होते अंत की रोकथाम के लिए क्या करना चाहिए? मैंने अपने एक मित्र से सुना है कि ‘किसी से रिश्ते बनाना उतना ही आसान है जितना मिट्टी से मिट्टी पर मिट्टी लिखना पर इसे निभाना उतना ही कठिन है जितना पानी से पानी पर पानी लिखना’शायद ये लाईने मित्रता के संदर्भ में सटीक बैठती है |