एक आदमी हूँ मैं, बिलकुल सीधा एक आम आदमी
रोज उठकर लड़ता हूँ ज़िन्दगी से, सिर्फ जीने के लिए
करता हूँ फरेब, बोलता हूँ झूठ भी, सिर्फ जीने के लिए
अन्याय कर भी लेता हूँ,सह भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
झूठे ही हंस भी लेता हूँ, सच में रो भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
कभी कभी आती है आवाज अंदर से कि विद्रोह कर दूँ
पर नही कर पाता, परिवार चलाने के लिए और जीने के लिए
रोज रात बिस्तर पर घूम जाते हैं आँखों में, मेरे गलत काम
खुद से सब बदलने का वायदा करते कट जाती है सारी रात
सुबह बेचैन मन, भारी आँखें और बेदम शरीर लिए
भूलकर सारे गुनाह और वादे, चल पड़ता हूँ फिर उसी ओर
जहाँ मेरा दम घुटता है, पाँव छिलते हैं, ज़मीर मरता है
क्योंकि घर की जिम्मेदारियां हैं कन्धों पर, ढोता हूँ खुद की लाश
अपनी ख़ुशी से जहर पीने के लिए, सिर्फ जीने के लिए
रोज उठकर लड़ता हूँ ज़िन्दगी से, सिर्फ जीने के लिए
करता हूँ फरेब, बोलता हूँ झूठ भी, सिर्फ जीने के लिए
अन्याय कर भी लेता हूँ,सह भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
झूठे ही हंस भी लेता हूँ, सच में रो भी लेता हूँ, सिर्फ जीने के लिए
कभी कभी आती है आवाज अंदर से कि विद्रोह कर दूँ
पर नही कर पाता, परिवार चलाने के लिए और जीने के लिए
रोज रात बिस्तर पर घूम जाते हैं आँखों में, मेरे गलत काम
खुद से सब बदलने का वायदा करते कट जाती है सारी रात
सुबह बेचैन मन, भारी आँखें और बेदम शरीर लिए
भूलकर सारे गुनाह और वादे, चल पड़ता हूँ फिर उसी ओर
जहाँ मेरा दम घुटता है, पाँव छिलते हैं, ज़मीर मरता है
क्योंकि घर की जिम्मेदारियां हैं कन्धों पर, ढोता हूँ खुद की लाश
अपनी ख़ुशी से जहर पीने के लिए, सिर्फ जीने के लिए
