सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा .................
पल पल घटनाए बदलती रहती हैं और छोड़ जाती है एक अनुत्तरित
सा प्रश्न की क्या हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? हमारी अस्मिता,हमारी धरोहर,हमारे प्रतीक चिह्न और हमारी जीवन
पद्धति क्या सचमुच अक्षुण है?जवाब मिलता है किशायद नहीं।क्योंकि
सीमा विवाद जैसी घटनाएँ हमारी राष्ट्रीय अस्मिता को चोट पहुंचा रही
है। हमारे धरोहर भी भूलुंठित हो रहे है,उन्हें संरक्षित न करना,देश को
शर्मसार करने जैसा ही है।प्रतीक चिह्न भी सभ्यता का आईना होते
है और उनकी सुरक्षा-संरक्षा ठीक ढंग से न हो पाना अपमानित और
लांक्षित करता है।और जहाँ तक जीवन पद्धति का सवाल है हम देश
वासी आर्यावर्त के मूल को छोड़कर विभिन्न संस्कृतियों के साँझा-स्वरुप को अपनाये हुए है और यह कृत्य भी हमें कहीं न कहीं विदूषक
की श्रेणी में ला खड़ा करता है और अफ़सोस इस बात का है कि स्वतंत्रता
के 66वर्षीय इतिहास में यह सब दिखाई दे रहा है।बुद्ध की प्रतिमा का
विखंडन,अमेरिका में एक मदिरा की बोतल पर माँ काली की नग्नछवि
को उकेरना आदि घटनाओं से हम व्यथित और लज्जित हुए हैं।
अपसंस्कृति का उदाहरण हमें बाहर से लेकर घर तक देखने को मिल रहा
है,हम उन्मुक्त हो गए हैं और यह स्वछंदता हमें विदूषक की स्थिति में ला
खड़ी कर देती है।कालचक्र चलता रहता है हम अनेकों बार स्वतंत्रता दिवस
मनाते रहें और गणतंत्र की भावना से ओतप्रोत होते रहें?

