अनेंक मनोंवैज्ञानिको ने कहा है की व्यक्तित्व मन और शरीर का संगठनात्मक योग है अर्थात हमारा सुन्दर तन ही केवल मायने नहीं रखता इसके साथ साथ सुन्दर मन का भी होना जरूरी है क्योकि हमारा चेहरा हमारे मन का प्रतिबिम्ब है।हमारे बाहरी भावों की अभिव्यक्ति का उद्गम स्थल हमारा मन ही होता है,हमारे विचार पहले हमारे मन में ही उठते है जिसके ऊपर हमारा व्यवहार निर्भर करता करता है।इस बात का ध्यान रखना जरूरी है की इनमें सदैव संतुलन बना रहे ।क्योकि आज ज्यादातर लोग वाह्य व्यक्तित्व के सुधार में लगे रहते है जबकि व्यक्तित्व का होना ज्यादा आवश्यक है तभी हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व सुधर सकता है।
