आज के दौर में मैं इतना आगे निकल आया
जिसका मुझे डर था वही सामने पाया!
हर पल हर घडी उसी की याद सताती है
बहुत समझाया दिल अपने आप को !
पर दिल और दिमाग ने साथ ही नहीं दिया
देता भी कैसे ?दिल दिल के हाथों मजबूर था!
और दिमाग उसकी यादों में उसकी यादों में था
आखिर बात क्या थी जो उसने दूरी की
मेरी समझ में अभी तक न आया!
लम्हा लम्हा वक़्त गुजर रहा है
गम कम होने का नाम नहीं ले रहा है!
अक्सर सोचता रहता हूँ क्यों प्यार हो गया
जब की मैं जानता हूँ की प्यार पूरा कम होता है!
अब तो शरीर भी जान नहीं है शायद ?
पर दिल की धड़कन कहती है की अभी जिन्दा हूँ!
काश तुने जहर दे दिया होता !
न जान रहती न तेरी याद आती
कम से कम इस तरह तो न सताती !
बहुत रोया तुम्हे दिल में सोच कर
पर अब आसुओं ने भी साथ छोड़ दिया है
ठीक वैसे ही जैसे तुमने छोड़ दिया है!
बहुत सह लिया पर जी रहा हूँ
तेरी यादों के आसुओं को पी रहा हूँ !
क्या तू बेवफा है या पत्थर दिल
नहीं शायद मेरे प्यार में ही कमी है!
